क्या बीजेपी से रूठ गए 'त्रिदेव'..क्यों कोरे ही रह गए 'प्रभारियों' के 'पन्ने'...डेढ़ साल में कैसे होगा 'मेरा बूथ सबसे मजबूत'..ये वो सवाल हैं जिसका जवाब बीजेपी ने अब नहीं तलाशा तो शायद बहुत देर हो जाएगी...17 साल पुरानी सत्ता के मद में चूर होना जायज है...लेकिन, ये भूल जाना तो.... नाइंसाफी ही होगी कि. जीत का सेहरा..सत्ताधीश नहीं.... सत्ता के सिपाही सजाते हैं... जो अब बीजेपी की जीत की कमान थामने के लिए तैयार नजर नहीं आ रहे...ऐसा क्योंं हो रहा है..ये जानने के लिए देखिए..... न्यूज स्ट्राइक.. मेरे..... यानि हरीश दिवेकर के साथ......बीजेपी के लिए खतरे की घंटी बज चुकी है....... इस घंटी की आवाज बार बार बीजेपी नेताओं को यही कह रही है...... कि बस बहुत हुआ........ सत्ता की खुमारी तोड़ो और अपने एसी कमरों से बाहर निकलों.........जनता से मिलो........... बीजेपी के वरिष्ठ नेता इस आवाज को अनसुना कर सकते हैं...... लेकिन, इसकी अनदेखी नहीं कर सकते......... क्योंकि नगरीय निकाय चुनाव के एक चरण ने ही बीजेपी के प्रदेश पदाधिकारियों की सारी हेकड़ी निकाल दी है........ जो बीजेपी अपनी जीत के लिए आश्वस्त थी....... उसके सारे चुनावी पंडितों का गणित गड़बड़ा गया है...... अभी तो इतना वक्त भी नहीं कि हार जीत का आंकलन किया जा सके........फिलहाल तो अगले चरण के मतदान से पहले अपने कार्यकर्ताओं को इतना सक्रिय करना है......... कि वे मतदाता पोलिंग बूथ तक पहुंच सके........... कांग्रेस से ज्यादा ये स्थिति बीजेपी के लिए चिंताजनक है..........चिंताजनक इसलिए क्योंकि पहली बार बीजेपी का कार्यकर्ता इतना बुझा हुआ नजर आ रहा है.